मुक्तक
(1)
हृदय की वेदनाओं को
,हृदय में हीं समोती है ,
तुम्हारी याद आने पर ,खिलौनों को संजोती है ,
अवस्था ढल गयी उसकी, तो ठुकरा दिया तुमने ,
जो कल तुमको हसाती थी,वही मां आज रोती है |
तुम्हारी याद आने पर ,खिलौनों को संजोती है ,
अवस्था ढल गयी उसकी, तो ठुकरा दिया तुमने ,
जो कल तुमको हसाती थी,वही मां आज रोती है |
(2)
वक्त के अपने ही
फ़लसफ़े है ,
स्वयं से न जाने
कितने फ़ासले है ,
सफर में अपने जरा मुड़कर के तो देखो,
न कल बदले थे हम ,न आज बदले हैं ||
सफर में अपने जरा मुड़कर के तो देखो,
न कल बदले थे हम ,न आज बदले हैं ||
(3)
शहर-शहर गांव-गांव
लड़ेंगे ,
हर गली हर ठांव लड़ेंगे ,
इस बार तो हद हो गयी ,
देश के कुत्ते सभी चुनाव लड़ेंगे |
हर गली हर ठांव लड़ेंगे ,
इस बार तो हद हो गयी ,
देश के कुत्ते सभी चुनाव लड़ेंगे |
(4)
ख़्वाब ख़्वाब होते हैं
,सच से कोई खबर नही होता ,
दिल खूं से भरा होता
है ,ये कोई शहर नहीं होता ,
अजीज़ इतना
ही रखना कि ,मन बहल जाये ,
वरना इश्क़
से विषैला कोई जहर नहीं
होता ||
(5)
ऐसे भी गीत
हमने, तेरी याद में
लिखे ,
दिल जल रहा था इसलिए, बरसात में लिखे ,
सब अपने थे पास दिन
में, तेरी याद ना आई ,
अकेले हुए जो फिर तो
,तन्हा रात में लिखे ||
(6)
पहले तो हमने ‘html’ से दिल लगाया था ,
फिर साथ में उसके
‘css,javaScript’ आया था ,
नींद उड़ गयी हमारी
थी उस वक्त दोस्तों ,
क्लास में सर ने जब vb.net पढ़ाया था ||
(7)
पहले तो हमें C का
चस्का लगा दिया ,
फिर बाद में C++ का
भी मस्का लगा दिया ,
एक दिन वो आकर बोले कि C# पढ़ना है ,
फिर बाद में java का
भी ठप्पा लगा दिया ||
(8)
आपके चेहरे का रंगत
देखकर लगता है यूँ ,
कि चाँद फीका पड़ गया
है आपके इस नूर से ,
आपकी नजरों का जादू
किसको ना दीवाना कर दे,
इसलिए मैं देखता हूँ
तुमको ,हाँ मगर दूर से||
(9)
रात खफा है या तू ,
चाँद बेवफा है या तू
,
समझ नही आता यकीन
किसपे करू ,
सच झूठा है या तू |
(10)
मेरे
मोहब्बत की भी ,गुमनाम इक कहानी है,
कि उसके नाम से ज़िन्दा ,ये जिंदगानी है,
मुझको अपने किरदार पे ,गुमां है ओ ! खुदा ,
कि उसके नाम से ज़िन्दा ,ये जिंदगानी है,
मुझको अपने किरदार पे ,गुमां है ओ ! खुदा ,
कि इक
शोख़-सी लड़की मेरी दीवानी है||
(11)
तेरे
सजदे में हूँ मैं, तुझको खुदा कर दूंगा,
अपना दिल
भी मैं ,तेरे दिल को अदा कर दूंगा ,
तू मेरे
साँस .मेरी धड़कन में यूँ समायी है ,
तू नहीं
तो ,मैं खुद हीं से खुद को जुदा कर दूंगा ||
(12)
मेरे दिल
के घरौंदें में ,घर है तेरा,
फुरसतों में कभी ,इनमें आओ न तुम ,
फुरसतों में कभी ,इनमें आओ न तुम ,
इस घर पर
तुम्हारा हीं अधिकार है ,
आकर कुछ
दिन यहाँ, पर बिताओ न तुम ||
(13)
प्रेम वीक के प्रथम
दिवस का ,फूल समर्पण तुम्हें प्रिये ,
मेरा तन –मन –धन
सबकुछ, प्रेम भी अर्पण तुम्हें प्रिये ,
हृदय के सारे संवादों को , शीशे-सा तुम झलका दो ,
स्वयं रहूँ
प्रतिबिम्ब तुम्हारा , कहूँ मैं दर्पण तुम्हें प्रिये||
(मयंक आर्यन)
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