Wednesday, April 5, 2017

मुक्तक
(1)
हृदय की वेदनाओं को ,हृदय में हीं समोती है ,
तुम्हारी याद आने पर ,खिलौनों को संजोती है ,
अवस्था ढल गयी उसकी, तो ठुकरा दिया तुमने ,
जो कल तुमको हसाती थी,वही मां आज रोती है |

(2)

वक्त के अपने ही फ़लसफ़े है ,
स्वयं से न जाने कितने फ़ासले है ,
सफर में अपने जरा मुड़कर के तो देखो,
न कल बदले थे हम ,न आज बदले हैं ||

(3)

शहर-शहर गांव-गांव लड़ेंगे ,
हर गली हर ठांव लड़ेंगे ,
इस बार तो हद हो गयी ,
देश के कुत्ते सभी चुनाव लड़ेंगे |

(4)


ख़्वाब ख़्वाब होते हैं ,सच से कोई खबर नही होता ,
दिल खूं से भरा होता है ,ये कोई शहर नहीं होता ,
अजीज़  इतना  ही रखना  कि ,मन बहल  जाये ,
वरना  इश्क़  से विषैला कोई  जहर  नहीं   होता ||
                 
(5)
ऐसे भी  गीत  हमने,  तेरी याद  में  लिखे ,
दिल जल रहा था  इसलिए, बरसात में लिखे ,
सब अपने थे पास दिन में, तेरी याद ना आई ,
अकेले हुए जो फिर तो ,तन्हा रात  में लिखे ||
(6)

पहले तो हमने  ‘html’ से दिल लगाया था ,
फिर साथ में उसके ‘css,javaScript’ आया था ,
नींद उड़ गयी हमारी थी  उस वक्त दोस्तों ,
क्लास में सर  ने जब vb.net पढ़ाया था ||
(7)
पहले तो हमें C का चस्का लगा दिया ,
फिर बाद में C++ का भी मस्का लगा दिया ,
 एक दिन वो आकर बोले कि C# पढ़ना है ,
फिर बाद में java का भी ठप्पा लगा दिया ||

(8)
आपके चेहरे का रंगत देखकर लगता है यूँ ,
कि चाँद फीका पड़ गया है आपके इस नूर से ,
आपकी नजरों का जादू किसको ना दीवाना कर दे,
इसलिए मैं देखता हूँ तुमको ,हाँ मगर दूर से||

(9)
रात खफा है या तू ,
चाँद बेवफा है या तू ,
समझ नही आता यकीन किसपे करू ,
सच झूठा है या तू |
(10)
मेरे मोहब्बत की भी ,गुमनाम इक कहानी है,
कि उसके नाम से ज़िन्दा ,ये जिंदगानी है,
 मुझको अपने किरदार पे ,गुमां है ओ ! खुदा ,
कि इक शोख़-सी लड़की मेरी दीवानी है||

(11)

तेरे सजदे में हूँ मैं, तुझको खुदा कर दूंगा,
अपना दिल भी मैं ,तेरे दिल को अदा कर दूंगा ,
तू मेरे साँस .मेरी धड़कन में यूँ समायी है ,
तू नहीं तो ,मैं खुद हीं से खुद को जुदा कर दूंगा ||

(12)

मेरे दिल के घरौंदें में ,घर है तेरा,
फुरसतों में कभी ,इनमें आओ न तुम ,
इस घर पर तुम्हारा हीं अधिकार है ,
आकर कुछ दिन यहाँ, पर बिताओ न तुम ||

(13)

प्रेम वीक के प्रथम दिवस का ,फूल समर्पण तुम्हें प्रिये ,
मेरा तन –मन –धन सबकुछ, प्रेम भी अर्पण तुम्हें प्रिये ,
हृदय  के सारे संवादों को , शीशे-सा तुम  झलका दो ,
स्वयं रहूँ प्रतिबिम्ब तुम्हारा , कहूँ मैं दर्पण तुम्हें प्रिये||
                 (मयंक आर्यन)

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